हवाओं में कुछ नमी सी है,
कभी कभी काले बादलों के साथ
कुछ चंचल बूंदें भी बरस पड़ती है।
लगता है, कि बारिश का मौसम
अब आ गया है।
ये बूंदें बरसती रहती हैं,
और मुझे नींद नहीं आती।
कौन कहता है कि
बचपन वापस नहीं आता?
मैं जब भी बूंदों की छम छम सुनता हूं,
मेरा बचपन वापस आ जाता है।
ठीक उन दिनों की तरह, आज भी,
ये बारिश छत से गिरकर
सीढ़ियों पर शोर मचाती है।
और, हवा के झोंको के साथ,
ये हल्की फुहारें,
चेहरे को छूती हैं।
कुदरत के ये कोमलतम कांटे है,
जिनका स्पर्श, नींद उड़ा देता है।
खिड़कियां बंद कर लूं, तो कुछ बूंदें,
इसकी काँच से टकराकर दम तोड़ती हैं।
और जाते जाते,
टेढ़ी मेढ़ी लकीरों से, कुछ
संदेशे लिख जाति हैं।
बिल्कुल थक हारकर ये बारिश
जमा होती है,
उसी घास के मैदान पर।
एक छिछला तालाब बन जाने पर,
इसी घास पर बचपन में खेलता था।
बारिश कब रुके, कौन जाने!
माँ से बचकर आज भी
इसी घास पर खेल लेता हूं,
कौन कहता है कि बचपन वापस नहीं आता?
हर एक बारिश में माँ आगाह करती है,
हर एक बारिश में में खेलता हूं।
और, हर एक बारिश में मेरा बचपन वापस आता है!
२२/०६/२०१४